फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुक्सान होता है। फसल अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नाईट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश व 60 प्रतिशत सल्फर का नुक्सान होता है। उन्होंने बताया कि इससे जैविक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी कीटों का नुक्सान होता है।
उन्होंने बताया कि फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बनडाई आक्साईड, राख, सल्फर हाईआक्साईड, मीथेन व अन्य अशुद्धियां उत्पन्न होती है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। इन्हें जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ-साथ भूूण्डलीय तापमान में बढौत्तरी होती है तथा छोटे पौधे व वृक्षो पर आश्रित पक्षी मारे जाते हैं।
फसल अवशेषों के साथ 10-15 किलोग्राम यूरिया खाद डालने से अच्छी जैविक खाद मिलती है। भूमि की उर्वरा शक्ति व जैविक कार्बन में बढ़ौतरी होती है। उन्होंने बताया कि इससे समय की बचत होती है और उपयुक्त समय पर बिजाई सम्भव होती है। फसल अवशेष पोटाश व अन्य पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने का महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। इससे रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होती है। इस प्रकार विदेशी मुद्रा बचती है।
पानी की बचत होती है। फसल अवशेष अत्याधिक गर्मी व ठंड में भूमि के तापमान नियंत्रण में सहायक होते है। बदलते मौसम के प्रभाव का प्रकोप कम होता है। उन्होंने बताया कि फसलों की उपज में 2 से लेकर 4 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की बढौत्तरी होती है। लम्बे समय में भूमि के भौतिक रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है तथा उत्पादन लागत में कमी आती है। इसलिए सभी किसानों से अपील है कि वे फसली अवशेषों को न जलाएं बल्कि इनका सदुपयोग कर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाए।
उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे अपने फसल अवशेषों में आग न लगाए। फसल अवशेषों को जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। यदि कोई ऐसा करता है तो उसको मिलने वाली सरकारी सेवाओं को बंद कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं उनके शस्त्र लाईसेंस की सेवाओं को भी समाप्त किया जा सकता है। खेतो में आगजनी की घटनाओं को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उन्होंने स्पष्ट किया आगजनी की घटनाओं को रोकने में सभी जिलावासी अपना पूरा सहयोग दे। उन्होंने स्पष्टï किया कि फसलों के बचे अवशेषों को जलाने पर कानूनी कार्रवाई तथा जुर्माना भी किया जा सकता है जो कि ढाई एकड़ तक 2500 रुपये, ढाई एकड़ से 5 एकड़ तक 5000 रुपये व 5 एकड़ से ऊपर 15000 रुपये है। उन्होंने सभी किसानों से अपील की कि वे फसल अवशेषों को ना जलाएं और पर्यावरण प्रदूषण ना होने दें तथा भूमि को बंजर होने से बचाएं।