November 22, 2024

उद्योगपति एवं समाजसेवी भाई गुरूदेव दत्त छिब्बर ने कोरोना आपदा के समय विश्व के अनेक देशों में एंटी कोविड जीवन रक्षक दवाईयों की आपूर्ति करके अनेक बहुमूल्य जिंदगियों को बचा कर मानवता की महान सेवा की है। उनके इस अभूतपूर्व योगदान के लिए नेल्सन मंडेला पीस यूनिवर्सिटी उन्हें डॉक्टर ऑफ हयूमैनिटी की उपाधि से सम्मानित किया गया है और भविष्य में वे इसी प्रकार आपदा के समय में पूरे विश्व में मानवता की सेवा के अपने मिशन को जारी रखेंगे।

यह जानकारी गुरूदेव दत्त छिब्बर ने आज आयोजित एक प्रेसवार्ता के दौरान दी। इस उपाधि को मिलने पर वह अपने आप को गौरवांतित महसूस कर रहे हैं। इस मौके पर राष्ट्रीय परशुराम सेना ब्रहम वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष जंगशेर शर्मा व अन्य ब्राहमण सभा के पदाधिकारियों ने गुरूदेव दत्त छिब्बर को पगड़ी व भगवान परशुराम का परसा देकर उनका अभिनंदन भी किया।

यहां बता दें कि फार्मा कंपनी मैक्लीन एंड अर्गस फार्मास्यूटिकल्स लिमिटिड के संस्थापक चेयरमैन पद पर विराजमान अम्बाला के प्रसिद्ध उद्योगपति भाई गुरूदेव दत्त छिब्बर को नेल्सन मंडेला पीस यूनिवर्सिटी की ओर से विश्व के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान डॉक्टर ऑफ हयूमैनिटी उपाधि 2023 से नवाजा गया है।

उन्हें नेल्सन मंडेला पीस यूनिवर्सिटी की ओर से बौद्धलोक मावठा कोलंबो श्रीलंका स्थित भंडारनायके मैमोरियल इंटरनेशनल कॉन्फ्रैंस हॉल में आयोजित भव्य समारोह में भाई गुरूदेव दत्त छिब्बर को डॉक्टर ऑफ हयूमैनिटी की उपाधि से नवाजा गया।

इस अवसर पर उद्योगपति गुरूदेव दत्त छिब्बर ने डॉक्टर ऑफ हयूमैनिटी की उपाधि से सम्मानित करने के लिए नेल्सन मंडेला पीस यूनिवर्सिटी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि बीते 40 वर्षों में देश विदेश के आपदाकाल सुनामी, भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपातकालीन स्थितियों में मानवता की बढ़-चढक़र सेवा की है और समाजसेवा के क्षेत्र के तहत कार्य करने के लिए उनकी प्रेरणास्त्रोत रही उनकी जीवनसंगिनी रेणु छिब्बर, सुपुत्र पवन छिब्बर, पुत्रवधु प्रीति छिब्बर, पौत्र अमृतांश और पौत्री अगन्या का भी अहम योगदान है।

उन्होंने अपने जीवन परिचय के बारे में बताते हुए कहा कि आज उनके लिए बडा ही खुशी का दिन है, उनके परिवार में डॉक्टर की उपाधि पाने वाले पहले वह पारिवारिक सदस्य हैं। उन्होने यह भी बताया कि डॉक्टर बनने का सपना उनका बचपन से ही था। उनका परिवार भी चाहता था कि वह डॉक्टर बनें लेकिन किन्ही कारणों के चलते हुए वह डॉक्टर नहंी बन पाए थे।

उन्होंने लगभग 18 साल 3 महीने की उम्र में लगभग 7 वर्ष रनबैक्सी कंपनी में मैडिकल रिप्रैंजटेटिव के तौर पर कार्य किया और उस कार्य को पूरी लग्न व मेहनत के साथ किया। उनके मन में आया कि यदि हम दवाईयां बेचते हैं तो क्यों न इसकी शुरूआत हम यहीं से करें।

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