हरियाणा में साढ़े 9 साल से सरकार चला रही BJP ने लोकसभा चुनाव से पहले गांवों की राह पकड़ ली है।
ग्रामीण वोटरों को साधने के लिए मनोहर सरकार ने हाल ही में रूरल एरिया में रहने वाले 28 लाख से अधिक लोगों की तरफ से पेंडिंग पानी बिलों के 372 करोड़ रुपए माफ कर दिए।
यही नहीं, पार्टी अपनी विकसित भारत संकल्प यात्रा के जरिये प्रदेश के साढ़े 6 हजार से ज्यादा गांवों तक सीधे पहुंच बना रही है।
इस पूरी कवायद के पीछे एक बड़ी वजह है। दरअसल, BJP ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 58.2% वोट शेयर के साथ राज्य की सभी 10 सीटें जीती, मगर उसके महज 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में यह वोट शेयर घटकर 36.7% रह गया।
सिर्फ 5 महीने में वोट शेयर में आई इस 21.5% की गिरावट के चलते पार्टी विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई और उसे सरकार बनाने के लिए गठबंधन करना पड़ा।
हरियाणा में लगभग 60% वोटर किसी न किसी तरह से गांव से जुड़े हुए हैं। ऐसे में पार्टी ने अभी से गांवों पर फोकस बढ़ा दिया है ताकि 2019 जैसा कुछ भी दोबारा न हो जाए।
हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, प्रदेश में लगभग 25% जाट हैं और वे वर्ष 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के चलते BJP से नाराज हैं।
भाजपा भी ये बात बखूबी जानती है इसलिए उसने भी जाटों के दबदबे वाले इस प्रदेश में गैरजाट की राजनीति शुरू कर इस खाई को और चौड़ा कर दिया।
इसके बाद जाटों ने अपना गुस्सा 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मतदान करके निकाला। नतीजा- BJP का कोई जाट नेता जीत नहीं सका। जाट बिरादरी से आने वाले ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु जैसे मंत्री भी चित हो गए।
पार्टी से जुड़े सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2020 में केंद्र सरकार के तीन खेती कानूनों के खिलाफ किसानों ने सालभर लंबा जो आंदोलन किया, उसमें सबसे अहम रोल जाट समुदाय ने ही निभाया था।
बेशक खेती कानून वापस लिए जा चुके हैं, लेकिन लोग इस आंदोलन को भूले नहीं हैं।
चुनाव में किसानों, खासकर जाटों का ये गुस्सा पार्टी का नुकसान न कर दे, इसलिए BJP ने ग्रामीण एरिया में आक्रामक ढंग से उसे काउंटर करने की रणनीति बनाई है।