जीरी (धान) के एक-एक दाने को टेराकोटा पर चस्पा कर देवी मॉ की तस्वीर नूमा मूर्ति तैयार की है। इस तस्वीर नूमा देवी मॉ की मूर्ति को तैयार करने में लगभग 6 घंटे का समय लगता है। इस महोत्सव के लिए देवी मॉ की मूर्ति विशेष तौर पर बना कर लाए है।
अहम पहलू यह है कि टेराकोटा से हरे रामा-हरे कृष्णा, राधे-राधे, चैतन्य महाप्रभु और कान्हा का खिलौना विशेष तौर पर तैयार किया है। यह शिल्पकला वेस्ट बंगाल से शिल्पकार किशना सिंह लेकर आए है।
शिल्पकार किशना सिंह का पिछले 15 सालों से भी ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के साथ नाता रहा है। इस महोत्सव में कोरोना काल के बाद पहली बार आए है। हालांकि इस महोत्सव में आने का बेसब्री से इंतजार करते है।
शिल्पकार किशना सिंह का कहना है कि उनके परिवार के 10 से ज्यादा सदस्य टेराकोटा की शिल्पकला बनाने का काम करते है। उनके पिता गुरन सिंह को वर्ष 1992 में वेस्ट बंगाल सरकार की तरफ से स्टेट अवार्ड का खिताब दिया गया। इस अवार्ड के बाद उनके परिवार के सदस्य और अधिक जुनून के साथ इस शिल्पकला से जुड गए।
उन्होंने कहा कि टेराकोटा से देवी मां की तस्वीर नूमा मूर्ति का खाका तैयार किया और उसकी साज-सज्जा जीरी के दानों के साथ की है। जीरी के एक-एक दाने को टैराकोटा पर चस्पा कर देवी मॉ का स्वरूप दिया जाता है।
इस एक तस्वीर को बनाने में आधा दिन का समय लगा जाता है। उनके परिवार के 10 सदस्य इस शिल्पकला को तैयार करते है। इसके अलावा सोलो वुड से भी देवी मॉ की तस्वीर तैयार की है। यह लकडी शुभ मानी जाती है और इस लकडी से बनी तस्वीर की पूजा अर्चना की जाती है।
शिल्पकार ने कहा कि इस महोत्सव में टेराकोटा से बने कान्हा, हरे रामा हरे कृष्णा का समूह, राधे-राधे, गणेश जी और चेतन्या महाप्रभु के खिलौने तैयार करके लाए है। इसके अलावा समाज से लुप्त हो रही गांव की शिल्पकला को भी खिलौने के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है। उन्हें इस महोत्सव में आने का इंतजार रहता है क्योंकि यहां के पर्यटक उनकी इस कला को काफी पसंद करते है।