November 22, 2024

Haryana Chief Secretary Sanjeev Kaushal

चंडीगढ़/समृद्धि पराशर: एक समय था जब हरियाणा में धान की पराली को पर्यावरणीय खतरे के रूप में देखा जाता था लेकिन वर्तमान सरकार ने इसे किसानों की आय बढ़ाने के एक महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में बदलने का काम किया है। सरकार ने पराली के सदुपयोग व सही प्रबंधन के लिए सामान्य निर्धारित दर (कॉमन डिटरमाइंड रेट) की घोषणा की है। इसके अंतर्गत धान की खेती में इन-सीटू और एक्स-सीटू तकनीक और डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) तकनीक के लिए वित्तीय सहायता के साथ-साथ धान की पराली के लिए 2500 रुपये प्रति मीट्रिक टन के कॉमन डिटरमाइंड रेट की घोषणा जैसे उपाय शामिल हैं।

इसके अलावा, हरियाणा ने पिछले वर्ष की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं को लगभग 40 प्रतिशत तक कम करने में सफलता हासिल की है। इस तरह, ये प्रयास सतत कृषि पद्धतियों के साथ-साथ पर्यावरणीय चुनौतियों को कम करने के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने आज यह बात धान की पराली जलाने की घटनाओं से निपटने संबंधी एक बैठक में कही। बैठक में राज्य की कार्य योजना और तैयारियों की समीक्षा की गई। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के अध्यक्ष एम.एम. कुट्टी, पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विनीत गर्ग, हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष पी. राघवेंद्र राव और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक नरहरि बांगर उपस्थित थे। सभी उपायुक्त वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस बैठक में शामिल हुए।

मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य में शून्य कृषि अग्नि परिस्थिति के लक्ष्य को प्राप्त के लिए राज्य सरकार ने 2500 रुपए प्रति मीट्रिक टन एवं 20 प्रतिशत से कम नमी पर अतिरिक्त 500 रुपये प्रति मीट्रिक टन रुपये की सीडीआर अधिसूचित की है। इसके अलावा, हरियाणा किसानों को रुपए सहित वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। इन-सीटू/एक्स-सीटू तकनीक के लिए प्रति एकड़ 1000 रुपये। मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत 7000 प्रति एकड़ और धान की खेती में डीएसआर तकनीक के लिए प्रति एकड़ 4000 रु निर्धारित है। इन पहलों का उद्देश्य राज्य में टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देते हुए किसानों को उनकी आय अधिकतम करने में सहायता करना है।

कौशल ने धान की पराली को जैव ईंधन में बदलने के लिए उठाए गए कदमों पर जोर दिया। बैठक के में बताया गया कि राज्य सरकार ने पूरे हरियाणा में औद्योगिक इकाइयों में 13,54,850 मीट्रिक टन धान की पराली का उपयोग करने का लक्ष्य रखा है। ये पहल टिकाऊ कृषि पद्धतियों और कृषि अपशिष्ट के प्रभावी और उपयुक्त उपयोग के प्रति हरियाणा प्रदेश के सकारात्मक रुख को व्यक्त करती है। भारत सरकार द्वारा हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश और एनसीटी दिल्ली में फसल अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन के लिए और कृषि तंत्र को बढ़ावा देने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत तीन सौ करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

कौशल ने सभी जिलों में सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों के बारे में किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने उपायुक्तों से किसान संघों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने का आग्रह किया। उन्होंने संबंधित समूहों को तत्काल सक्रिय करने के निर्देश भी दिए। इसके अलावा मुख्य सचिव ने कहा कि उपायुक्त हर 15 दिन पर संबंधित अधिकारियों के साथ बैठककरने के लिए कहा । उन्होंने उपायुक्तों को प्रेस के माध्यम से किसानों को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि तथा कृषि उपकरणों की उपलब्धता की जानकारी प्रसारितकरने बल दिया गया। उन्होंने इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के अभियान में शैक्षणिक संस्थानों, धार्मिक संगठनों और ग्राम पंचायतों को भी जोड़ने के लिए कहा ।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के अध्यक्ष एम. एम. कुट्टी ने कहा कि हरियाणा ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पराली प्रबंधन की दिशा में बेहतर काम की प्रशंसा है, लेकिन पराली जलाने की घटनाओं को शून्य पर लाना होगा। इसके लिए जिला प्रशासन के अधिकारियों को इस दिशा में और अधिक मेहनत करने की जरूरत है। किसानों को आधुनिक कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जाएं ताकि पराली का उचित प्रबंधन हो सके। उन्होंने कहा कि पराली प्रबंधन के लिए आईओसीएल पानीपत में स्थापित इथेनॉल प्लांट में पराली पहुंचाने के लिए आसपास के जिलों के किसानों को जागरूक किया जाए। किसानों को पराली को जलाने के बजाय इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करें। इसके अलावा औद्योगिक इकाइयों को पराली के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि एनसीआर क्षेत्र में पराली जलाने की घटनाओं पर आयोग द्वारा कड़ी नजर रखी जाएगी।

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