December 22, 2025
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श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी समागम के अवसर पर गुरुद्वारा साहिब गोबिंदपुरा, भम्भौली में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की तथा श्री गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि आज इस पवित्र धरा पर आप सबके बीच में आकर मेरा मन श्रद्धा और गौरव से भर गया है। आज हम यहां उस महान विरासत को नमन करने आए हैं, जिसने न केवल भारत की अस्मिता को बचाया, बल्कि मानवता को धर्म और सत्य के लिए सर्वस्व अर्पण करने का मार्ग दिखाया। आज का यह शहीदी समागम श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की 350वीं शहीदी शताब्दी तथा माता गुजर कौर जी और चारों साहिबजादों की महान शहादत को समर्पित है। उन्होंने कहा कि समागम में पंथ के महान कीर्तनी जत्थे और विद्वान कथा वाचक से जो गुरुवाणी का प्रवाह यहां हो रहा है। उससे हमारी साध संगत तो निहाल होगी ही, साथ ही हमारी युवा पीढ़ी भी गुरु साहिबान और वीर साहिबजादों की शहादत से प्रेरित होगी। मुख्यमंत्री ने गुरूद्वारा ट्रस्ट को 31 लाख रुपये देने की घोषणा की। गुरूद्वारा ट्रस्ट द्वारा मुख्यमंत्री को सरोपा, श्री गुरू तेग बहादुर जी का चित्र व तलवार भेंट कर सम्मानित किया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज के इस समागम में बड़े रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया है। यह गुरु साहिब की उस शिक्षा का ही विस्तार है, जिसमें कहा गया है कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है। उन्होंने रक्तदान के लिए उमड़े युवाओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि आपका दिया हुआ रक्त किसी का जीवन बचा सकता है। साथ ही, इस समागम के आयोजन के लिए बाबा जसदीप सिंह व आयोजकों का हार्दिक आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि सरबंसदानी दशम पातशाह श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के परिवार की शहादत को दुनिया के इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। केवल 6 और 9 वर्ष की छोटी सी आयु में शहादत देने वाले उनके वीर बेटों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को जब भी याद किया जाता है, तो हर किसी की जुबान से निक्किया जिंदा वड्डा साका शब्द निकलते हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया के इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती, जहां मासूम बच्चों ने धर्म की रक्षा के लिए दीवारों में जिंदा चिनवाना स्वीकार कर लिया हो, लेकिन झुकना स्वीकार न किया हो। उनके परिवार के सभी सदस्यों ने एक ही सप्ताह 20 से 27 दिसम्बर, 1704 में धर्म व आम जन की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। वह सप्ताह इतिहास के पन्नों पर सदैव अंकित रहेगा। उन्होंने कहा कि यह शहादत हमें सिखाती है कि वीरता उम्र की मोहताज नहीं होती। माता गुजर कौर जी ने जिस तरह जेल की ठंडी बुर्जियों में रहकर भी अपने पोतों को धर्म पर अडिग रहने की शिक्षा दी, वह आज की माताओं और बहनों के लिए भी प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत है। इसी तरह, चमकौर साहिब के युद्ध में केवल 17 वर्ष के बाबा अजीत सिंह जी और 15 वर्ष के बाबा जुझारू सिंह जी ने मुगल सेना के खिलाफ वीरता से लड़ते हुए शहादत दी थी। आज उस महान विरासत का पर्व है, जिसमें गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कहा था- सूरा सो पहचानिए, जो लड़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे, कबहूं न छाड़े खेत। अर्थात शूरवीर उसे जानिए जो देश-धर्म के लिए लड़े। इस लड़ाई में अंग-अंग कट जाए तो भी पीछे न हटे।
उन्होंने कहा कि वीर साहिबजादों की शहादत सदियों तक नई पीढिय़ों को देशभक्ति की प्रेरणा देती रहेगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उनके शहीदी दिवस को हर वर्ष वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। हर साल 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस पूरे देश में गहन श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सरबंसदानी श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के परिवार के बलिदान से जुड़ी कहानी को जितनी बार हम पढ़ेंगे, सुनेंगे और जानेंगे उतनी बार ही राष्ट्र हित में बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए प्रेरित होंगे। इसी भाव से हर साल शहीदी जोड मेले पंजाब में ही नहीं, बल्कि पूरे देश और विदेशों में भी आयोजित किये जाते हैं। यह मेला 20 दिसंबर से शुरू होकर 27 दिसंबर तक चलता है। इस दौरान गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब में विशेष आयोजन होते हैं और लोग जमीन पर सोकर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। ऐसे ही वीरों की शहादत को नमन करते हुए कवि जगदम्बा प्रसाद मिश्र जी ने कहा था- शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे, हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।
उन्होंने कहा कि श्री गोबिन्द सिंह जी के बच्चों को देश व धर्म के लिए बलिदान देने की दृढ़ भावना विरासत में मिली थी। उनके दादा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने भी देश व धर्म के लिए अपना शीश बलिदान कर दिया था। यह वर्ष उनके बलिदान का 350वां वर्ष है। उनका नाम जुबान पर आते ही हमारे सामने एक ऐसे महापुरूष की छवि उभर कर आती है जिन्होंने धर्म को केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रखा बल्कि उसे अधिकार और आजादी के साथ भी जोड़ा। जब कश्मीर में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे थे, जब वहां तलवार के बल पर तिलक और जनेऊ मिटाने की कोशिश की जा रही थी, तब गुरू साहिब ने निर्भर होकर कहा था कि-अगर तिलक और जनेऊ बचाना है तो किसी महापुरूष को शहादत देनी होगी।