सरकार की सूअर पालन योजना देश की सभी योजनाओं में से सबसे सस्ती व कम लागत और मुनाफा देने वाली योजना है। इस व्यवसाय को अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय माना जाता है।
उपायुक्त ने बताया कि हमारे देश में सुअर पालन का कार्य बहुत पुराने समय से किया जा रहा है। देश में ही नही अन्य देशों में सुअर के मांस का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
इसके अलावा इससे कास्मैटिक प्रोडैक्ट व दवाईयां भी बनाई जाती है। उन्होंने बताया कि सुअर पालन व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकार द्वारा अनुदान पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है। इस योजना को चालू करने के लिए बैंकों और नाबार्ड द्वारा 12 प्रतिशत वार्षिक ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा सुअर पालन के लिए एक लाख रुपये तक की धन राशि पर सब्सीडी दी जाती है। इससे अधिक राशि लेने पर अपने एरिया के नाबार्ड खेती परियोजना अधिकारी से सम्पर्क करके इनमे छूट लेने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि एक लाख रुपये पर कोई ब्याज नही देना पड़ता। एक लाख रुपये से अधिक राशि पर 15 से 25 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि सरकार की नाबार्ड की सुअर पालन योजना के अंतर्गत ऋण राशि पर 20 से 30 प्रतिशत सब्सीडी प्रदान की जाएगी। सुअर पालन योजना के लिए भारत का नागरिक होना चाहिए, आयु 18 वर्ष से कम नही होनी चाहिए, पशु पालक के पास पशुओं को पालने के लिए स्वयं की जमीन होनी चाहिए या कोई जमीन उनके नाम 10 वर्ष की लीज पर होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि शैक्षणिक योग्यता व अनुभव की कोई जरूरत नही होती। सरकार द्वारा इस व्यवसाय को बढ़ावा देने के उदेश्य से युवाओं को स्वरोजगार की ओर प्रेरित करना है।
पशु पालन व्यवसाय में अन्य पशुओं की अपेक्षा सुअर पालन व्यवसाय को सबसे सस्ता व्यवसाय माना जाता है। इसका मुख्य कारण मार्किट में मांस की मांग तेजी से बढ़ रही है। दूसरी ओर इस पशु को पालने का लाभ यह भी है कि एक मादा सुअर एक बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता रखती है।
इसलिए इस व्यवसाय में लागत कम मुनाफा अधिक मिलता है। सरकार द्वार सुअर पालन योजना को शुरू करने को उदेश्य देश में बेरोजगार लोगों को व्यवसाय के रूप में रोजगार उपलब्ध करवाना है।
सुअर पालन एक कम लागत से शुरू होने वाला व्यवसाय है। इस व्यवसाय को बड़े पैमाने पर कोई पशु पालक करना चाहता है तो सरकार द्वारा जरूरत के अनुसार लोन व सब्सीडी का प्रावधान है।