‘थीम’ यानी खास फोकस। आपने पूजा पंडालों की थीम के बारे में सुना ही होगा। देशभक्ति, बॉलीवुड या स्पेस मिशन की थीम पर बने पंडाल देखे भी होंगे। पिछले कुछ वर्षों से देश का बजट भी थीम बेस्ड आ रहा है।
हर साल बजट किसी खास सेक्टर पर फोकस करता है। ताकि उस क्षेत्र में जरूरी विकास किया जा सके। इसे ही बजट की थीम कहते हैं। जैसे इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ‘DigitAll’ थीम पर बजट पेश करेंगी। पिछले कुछ वर्षों की बजट थीम पर नजर डालें तो कभी बजट वुमन सेंट्रिक कहलाया, कभी ‘आत्मनिर्भर भारत’ वाला, तो कभी ‘डिजिटल इंडिया’ की थीम पर जारी हुआ।
पिछले 9 वर्षों में मोदी सरकार में पेश हुई बजट थीम और उसके नतीजों का खास पैटर्न नजर आता है। बजट थीम जिस सेक्टर पर रही, उसके आने के बाद वही सेक्टर चुनौतियों की चपेट में आ गया।
जिस सेक्टर की भलाई को लेकर कल्पना की गई; आने वाले समय में उसी सेक्टर का सबसे ज्यादा खस्ताहाल देखने को मिला। कभी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों तो कभी महामारी की चपेट में आकर मोदी सरकार के बजट की थीम अपने रास्ते से डगमगा गई।
2014 में मोदी सरकार का पहला बजट वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया। इस बजट की थीम थी- ‘सबका साथ-सबका विकास’। लेकिन इसके तुरंत बाद ही देश भर में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए। 2015 में दादरी का चर्चित अखलाक हत्याकांड सामने आया और गिरजाघरों पर भी हमले देखने को मिले।
असहिष्णुता को लेकर देश भर में हंगामा हुआ; फिर जेएनयू विवाद सुलग उठा। इन सबके विरोध में साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों ने अपने अवॉर्ड वापस किए। ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले नारे के साल भर के भीतर ही देश अलग-अलग खेमों में बंटता दिखा।