आजादी के अमृत महोत्सव के कार्यक्रमों की श्रृंखला में सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग हरियाणा के सौजन्य से श्री कपालमोचन मेला परिसर में स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा से जुड़ी बड़ी घटना पर हिसार के अभिनय रंगमंच के कलाकारों ने मनीष जोशी द्वारा निर्देशित व यशराज शर्मा द्वारा लिखित दास्तान-ए-रोहनात नाटक का जीवंत मंचन किया। इस नाटक की विशेषता को समझते हुए श्री कपालमोचन में आए हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने इस नाटक को देखकर कलाकारों के भव्य रूप से प्रस्तुत किये मंचन को सराहा। कलाकारों ने नाटक के हर पात्र को बड़ी ही संजीदगी और जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया। कलाकारों की हर प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दिए और युवा पीढ़ी को देशभक्ति का संदेश दिया। उपायुक्त एवं मेला कपाल मोचन के मुख्य प्रशासक राहुल हुडडा ने दीप प्रज्जवलित करके नाटक मंचन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर उपायुक्त की धर्मपत्नी एवं नगर निगम अम्बाला की कमीश्रर नेहा सिंह, एसडीएम बिलासपुर जसपाल सिंह गिल, एसडीएम रादौर सितेन्द्र सिवाच, सीईओ जिला परिषद नवीन आहूजा, डीआरओ रामफल कटारिया, श्राईन बोर्ड के सदस्य विपिन सिंगला, वरिष्ठï भाजपा नेता दाता राम, श्री रामरूप आश्रम के संचालक रामस्वरूप ब्रहमचारी उपस्थित रहे।
इस मौके पर उपायुक्त राहुल हुड्डा ने कहा कि दास्तान-ए-रोहनात नाटक के माध्यम से देश की आजादी में हरियाणा के सूरमाओं की कुर्बानी को याद किया जा रहा है। यह हरियाणा सरकार का सहरानीय कदम है ताकि युवा पीढ़ी को आजादी की लड़ाई के वीरों शहीदों एवं रणबांकुरों की कुर्बानियों की जानकारी मिल सके। उन्होंने बताया कि रोहनात गांव में 23 मार्च 2018 से पहले कभी भी आजादी का जश्न नहीं मनाया गया था। परन्तु सरकार नेे इसको गंभीरता से लिया और उस गांव में भी राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। सरकार के आश्वासन के बाद 23 मार्च 2018 को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गांव के बुजुर्ग के हाथों राष्ट्रीय ध्वज फहराकर यहां के लोगों को गुलामी के अहसास से आजाद करवाया। उन्होंने कहा कि देश के अनेक सपूत ऐसे थे, जिनके नाम आजादी के इतिहास में दर्ज नहीं हो पाए और जाने-अनजाने उन्हें भुला दिया गया। ऐसे गांव रोहनात के तीन योद्धा- नौंदाराम, बिरड़ा दास तथा रूपराम खाती थे, जिनके नाम इतिहास में दर्ज नहीं हो पाए, लेकिन ये योद्धा देश के लिए अपना फर्ज निभा गए। रोहनात गांव के ये वीर अंग्रेजों के जुल्म का शिकार हुए। नौंदाराम को अंग्रेजों ने तोप के गोले से उड़ा दिया। वहीं बिरड़ा दास को मेख ठोक-ठोक कर मार दिया। इसी प्रकार रूपराम खाती ने भी अपनी कुर्बानी दी। कहा जाता है कि मंगल पांडे भी इनसे मिलने आते थे और वहां के लोगों को संगठित करने में इनका बड़ा योगदान रहा। इन्हीं के योगदान पर नाटक दास्तान-ए-रोहनात आधारित है।
नाटक का सार-
29 मई 1857 की तारीख को हरियाणा के रोहनात गांव में ब्रिटिश फौज ने बदला लेने के इरादे से एक बर्बर खूनखराबे को अंजाम दिया था। बदले की आग में ईस्ट इंडिया कंपनी के घुड़सवार सैनिकों ने पूरे गांव को नष्ट कर दिया। लोग गांव छोडक़र भागने लगे और पीछे रह गई वो तपती धरती जिस पर दशकों तक कोई आबादी नहीं बसी। दरअसल यह 1857 के गदर या सैनिक विद्रोह, जिसे स्वतंत्रता की पहली लड़ाई भी कहते हैं। दास्तान-ए-रोहनात नाटक अपने आप में अनूठा व यादगार है जिसमें कलाकारों ने जोरदार अभिनय का प्रदर्शन किया। दास्तान-ए-रोहनात नाटक में कबीर दहिया, निपुण कपूर, दिवयांसु सहित अन्य कलाकारों ने अपना अहम किरदार निभाया।
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प्रशासन की ओर से उपायुक्त राहुल हुडडा ने नाटक के कलाकारों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया और वहीं संतों की ओर से रामस्वरूप ब्रहमचारी ने उपायुक्त को शाल भेंट की।