कुम्हार पहले ही बेरोजगारी की मार झेल रहा है। लेकिन कोरोना के बाद सरकार द्वारा मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने पर कुछ राहत मिली थी। कोरोना महामारी के दौरान मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ गई थी और कुम्हारों का धंधा भी चल रहा था। लेकिन बर्तन बनाने में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी की कीमत लगातार बढ़ने से एक बार फिर से कुम्हारों को चिंता सताने लगी हैं। कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के दाम इतने बढ़ गए हैं कि मिट्टी के बर्तन, दिए तथा करवे बनाने में लागत अधिक आ रही है और बिक कम रहे है।
2 साल पहले तक जहां मिट्टी की ट्रॉली 1500 से 2000 रुपये में मिलती थी। वह ट्रॉली कोरोना के दौरान सरकार द्वारा मिट्टी के बर्तन को बढ़ावा देने की घोषणा के साथ ही 3000 रुपये तक बिकने लगी। अब दीपावली के समय में मिट्टी की ट्राली 5 हजार रुपये में आ रही है। जिससे कुम्हारों को दिए, करवे और कुल्हड़ बनाना महंगा पड़ रहा है। दीपावली का त्यौहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। वैसे ही मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है। लेकिन मांग के अनुरूप दिए नहीं बिक रहे हैं। वही 13 अक्टूबर को करवाचौथ होने के बाद भी करवे कम बिक रहे हैं। जिससे कुम्हार काफी चिंतित है। क्योंकि कुम्हारों ने अधिक संख्या में दिए व करवे बनाकर रख लिए हैं।
अब उन्हें बेचने की चिंता कुम्हारों को सताने लगी है। कुम्हार द्वारा 80 रुपये में 100 दिए बेचे जा रहे हैं। जबकि करवा 20 रुपये का है। जिसके चलते उनके दिए बहुत कम ग्राहक खरीद रहे हैं। उनका कहना है कि पहले त्यौहारी सीजन में वह मिट्टी से बने उत्पादों से अच्छे खासे पैसे कमा लेते थे। लेकिन अबकी बार उन्हें लगता है कि उनका त्यौहार फीका रहने वाला है। वही सरकार ने 5 साल पहले कुम्हारों को बढ़ावा देने के लिए गांवो में पांच – पांच एकड़ जमीन ग्राम पंचायतो से मिट्टी उठाने के लिए दिलाने की घोषणा की थी।
ताकि कुम्हारों के द्वारा चीनी बर्तनों पर रोक लग सके। लेकिन सरकार की यह घोषणा भी अन्य घोषणाओं की तरह कागजों में सिमट कर रह गई है। आज तक कुम्हारों को मिट्टी उठाने के लिए 5 एकड़ तो दूर 1 एकड़ जमीन तक नहीं मिली है। कुम्हार अशोक कुमार का कहना है कि बर्तन, दिए, करवे तथा मिट्टी के बर्तन बनाने का उनका पुश्तैनी काम है। पहले दीपावली के दौरान मिट्टी के दिए तथा करवे खूब बिकते थे। लेकिन अब महंगाई इतनी है कि दिए व करवे कम बिक रहे हैं।