मेरा मुख्यमंत्री के ड्राइंग रूम तक आना जाना है, मैं कोई भी काम जब चाहूं मुख्यमंत्री से करवा सकता हूं, मुख्यमंत्री और उनके सभी ओएसडी मेरी बात कभी नहीं टाल सकते, तुम मेरा जो बिगाड़ सकते हो बिगाड़ लो। मैं जो चाहूंगा, वही मुख्यमंत्री करेंगे। यह धमकियां हर उस आवेदक को हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के भ्रष्टाचार के आरोपी धनेश अदलखा देते थे, जिसने हरियाणा राज्य से बाहर से 12वीं या फार्मेसी की हो। यह बात शनिवार को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता के दौरान हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल में भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाले झज्जर निवासी राजेश कौशिक ने कही। राजेश कौशिक ने बताया कि पिछले कई सालों से हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल में भ्रष्टाचार चल रहा था, लेकिन जब मुख्यमंत्री ने धनेश अदलखा को मार्च 2019 में हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल का प्रधान बना दिया, तो उसके बाद भ्रष्टाचार कई गुना बढ़ गया। हर उस आवेदक से रुपए मांगे जाने लगे जिसने हरियाणा से बाहर 12वीं या फार्मेसी की हो।
रिश्वत का पैसा भी इतना कि एक आम फार्मासिस्ट अदा ना कर पाए। एक रजिस्ट्रेशन के 70000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक वसूले जाने लगे। धनेश अदलखा ने सोहन लाल के साथ मिलकर इसे एक व्यवसाय बना लिया और हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के कार्यालय को दुकान बनाते हुए सैकड़ों लाइसेंस भेज कर करोड़ों रुपए कमाए। किसी का लाइसेंस बिना रुपए लिए नहीं बनाया। जो कोई मंत्री या किसी बड़े राजनेता से इन्हें फोन करवा लेता था, तो उनका लाइसेंस बन जाता था, अन्यथा किसी का भी लाइसेंस बनवाने के लिए रुपए देने पड़ते थे। इनका लालच इतना बढ़ गया था कि फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों को भी नहीं बख्शा।
इसी के चलते राजेश कौशिक और सत्यवान ने हरियाणा राज्य चौकसी ब्यूरो को शिकायत दी थी जिसके बाद 2 जुलाई 2022 ट्रैप लगाकर चौकसी ब्यूरो ने उपप्रधान सोहन लाल कंसल और दलाल सुभाष अरोड़ा को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन मुख्यमंत्री के दबाव के चलते विजिलेंस ने काउंसिल के चेयरमैन धनेश अदलखा और रजिस्ट्रार राजकुमार वर्मा को अब तक गिरफ्तार नहीं किया है। उन्होंने बताया कि काउंसिल के सदस्य भी किसी का लाइसेंस बनवाने के लिए आए, तो उनसे भी रुपयों की मांग की जाने लगी। जिसका प्रमाण हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री को दी गई शिकायतें हैं, जिसमें उन्होंने लिखा है कि एक लाइसेंस के लिए 50,000 से 80,000 रुपए लिए जा रहे हैं । जबकि यह रेट बहुत कम बताया गया ।
बाहरी राज्यों से 12वीं या फार्मेसी करने वालों से धनेश अदलखा और सोहनलाल कंसल ने 70000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक लिए। राजेश कौशिक ने बताया कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल धनेश अदलखा को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका स्पष्ट प्रमाण है कि स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने धनेश अदलखा को निलंबित करने के लिए फाइल मुख्यमंत्री मनोहर लाल के पास भेजी है, लेकिन अब तक मुख्यमंत्री ने धनेश अदलखा, सोहनलाल कंसल और राजकुमार वर्मा को निलंबित करने के लिए आई फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए। जबकि धनेश अदलखा की जब अपॉइंटमेंट हुई थी, तो फाइल पहुंचने के आधे घंटे बाद मुख्यमंत्री ने फाइल साइन करके वापस भेज दी थी।
राजेश कौशिक और शिकायतकर्ता सत्यवान ने कहा कि हम कोई भी राजनीतिक लोग नहीं हैं। हम मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं। फार्मासिस्ट भाई बहनों की रोटी फार्मेसी लाइसेंस से चलती है, यदि हमारे पास लाइसेंस नहीं होगा, तो हम ना तो दुकान कर सकते हैं, ना ही किसी के पास नौकरी। धनेश अदलखा के पास सैकड़ों बार हजारों आवेदक आए, जिन्होंने उसके पास रोते-रोते गुहार लगाई कि हमारी फाइल निकाल दो। हम कोई फर्जी नहीं है, हमारा कसूर यही है कि हम दूसरे राज्य से पढ़ कर आए हैं, लेकिन भारत में रहने वाले नागरिक को क्या जिस राज्य में रहता है, वहीं से पढ़ना जरूरी है? लेकिन उसने कभी हमारी बात नहीं मानी और हमें धमकाता रहा । मजबूरी में अपना परिवार पालने के लिए फार्मासिस्ट भाई बहनों ने धनेश अदलखा और सोहनलाल कंसल को रिश्वत दी।
विजिलेंस द्वारा अभी तक केवल काउंसिल के उपप्रधान सोहनलाल कंसल और एक दलाल को ही पकड़ा गया है, जबकि धनेश अदलखा और राजकुमार वर्मा खुलेआम घूम रहे हैं। वह मुख्यमंत्री से विजिलेंस पर दबाव बनवा रहे हैं ताकि उन्हें केस में से बाहर निकाला जाए, क्योंकि उन दोनों का नाम दर्ज एफआईआर में सबसे ऊपर है। सत्यवान ने कहा कि धनेश अदलखा ने फार्मेसी काउंसिल में जमकर भ्रष्टाचार किया, जिसके बारे में हर किसी को पता है, लेकिन उसके मुख्यमंत्री से सीधे संबंध होने के कारण किसी ने उस पर कभी हाथ नहीं डाला और आज भी यही हो रहा है, उसे गिरफ्तार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे।