December 15, 2025
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उम्मीद जहां खत्म होती है,वहीं से आयुर्वेद शुरुआत करता है। ऐसे उदाहरण श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में देखने को मिल रहे हैं। कुरुक्षेत्र जिले के गांव गुमथला की 35 वर्षीय कविता को साल 2014 में डिलीवरी के बाद हल्का कमर दर्द शुरू हुआ,जो कुछ समय दवाइयों से ठीक हो गया। लेकिन समय के साथ दर्द बढ़ता गया और 2022 में हालत इतनी बिगड़ गई कि कविता चलने-फिरने की क्षमता खो बैठी और बिस्तर पर पड़ी कविता अब व्हीलचेयर पर निर्भर हो चुकी थी। कविता के पति गुरदेव ने पत्नी के इलाज के लिए हर संभव प्रयास किया।
उन्होंने कुरुक्षेत्र, कैथल, दिल्ली, चंडीगढ़, मोहाली और पंचकुला जैसे शहरों के विशेषज्ञ डॉक्टरों से संपर्क किया। हर जगह एक ही सलाह मिली-‘सर्जरी करवानी पड़ेगी’। क्योंकि कविता की रीढ़ की हड्डी से एल-4, एल-5 डिस्क बाहर की तरफ निकल गई थी और सेकेंडरी स्पाइनल कैनाल स्टैनोसिस हो गया था।
सर्जरी के डर के चलते कविता के पति गुरदेव मानसिक रूप से टूट चुके थे और पत्नी को दर्द से कराहते देख गुरदेव ने आखिरकार कुरुक्षेत्र के एक निजी अस्पताल में ऑपरेशन कराने का मन भी बना लिया था। इसी बीच, एक परिचित ने उन्हें श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय (कुरुक्षेत्र) के पंचकर्म विभाग के प्रोफेसर डॉ.राजा सिंगला का नाम सुझाया। 22 अगस्त 2024 को अंतिम उम्मीद के तौर पर गुरदेव अपनी पत्नी को व्हीलचेयर पर आयुष विश्वविद्यालय लेकर पहुंचा। यहां प्रो. राजा सिंगला और उनकी टीम ने कविता की जांच के साथ-साथ एमआरआई रिपोर्ट का गहराई से विश्लेषण किया।
रिपोर्ट में स्पष्ट था कि कविता को L4-L5 लेवल पर डिस्क बल्ज है, जिसकी वजह से सेकेंडरी स्पाइनल कैनाल स्टेनोसिस हो गया था। इसकी वजह से रीढ़ की हड्डी पर दबाव बन रहा था। स्ट्रेट लेग रेजिंग (एसएलआर) टेस्ट में कविता का पैर मात्र 10 डिग्री तक ही उठ पाया।
बिना सर्जरी, आयुर्वेद से मिला संजीवनी समाधान
डॉ.सिंगला की देखरेख में कविता को करीब एक महीने के लिए आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेदिक अस्पताल में भर्ती किया गया। यहां पंचकर्म चिकित्सा,  महानारायण तेल से कटी बस्ति, ग्रीवा बस्ति, निरुह बस्ति और आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन कराया गया। उपचार के 25वें दिन से कविता में धीरे-धीरे सुधार दिखने लगा और आज 75 फीसदी तक रिकवरी के साथ कविता बिना सहारे चलने, उठने और घर के सभी काम करने में सक्षम हो चुकी है। डॉ.राजा सिंगला ने बताया कि यह केस आयुर्वेद की शक्ति का प्रमाण है। जहां लोग सर्जरी को अंतिम विकल्प मानते हैं, वहीं सही निदान,परंपरागत चिकित्सा विधियों और धैर्य से चमत्कारिक सुधार संभव है। कविता का आत्मविश्वास लौट आया है।
यह वैद्यों के समर्पण का परिणाम: प्रो. धीमान
आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.वैद्य करतार सिंह धीमान ने बताया कि यह केस आयुर्वेद की जीवंत प्रभावशीलता और वैज्ञानिकता का प्रमाण है। जब आधुनिक चिकित्सा पद्धतियां सर्जरी को अंतिम विकल्प मान रही थी,तब आयुर्वेद ने बिना चीर-फाड़ के न सिर्फ रोग को नियंत्रित किया, बल्कि रोगी को पुनः सामान्य जीवन में लौटाया। यह श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के चिकित्सकों की विशेषज्ञता और समर्पण का परिणाम है।

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