
हरियाणा के ऊर्जा, परिवहन एवं श्रम मंत्री श्री अनिल विज ने कहा कि आज आदमी अपना अधिकतर समय टीवी पर पूरे संसार को देखता है और जो वो देखता है उसी को देखकर एक्शन-रिएक्शन करता है। नई पीढ़ी मोबाइल, टीवी व कंप्यूटर में खो गई है। यदि हमें अपनी युवा पीढ़ी को सुधारना है तो मोबाइल व टीवी का सीमित प्रयोग करना होगा और आज हमें मोबाइल पर अपना स्क्रीन टाइम कम करने की जरूरत है।
श्री विज आज एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र द्वारा अम्बाला जिले के मेधावी विद्यार्थियों के सम्मान में आयोजित किए गए “भविष्य ज्योति समारोह” में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने जिले के विभिन्न स्कूलों में अव्वल आए 125 विद्यार्थियों को सम्मानित किया तथा सभी विद्यार्थियों को अपने स्वैच्छिक कोष से 10-10 हजार (कुल 12.50 लाख रुपए) देने की घोषणा की।
कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने कहा कि हर चीज का लाभ व हानि है। मोबाइल का लाभ हुआ है जिससे समाज पहले से ज्यादा सजग हुआ है, मगर इसके नुक्सान भी हुए हैं। पहले गली-मोहल्ले में लोग शाम एक-दूसरे के साथ बैठ बाते करते थे और जुड़ने की कोशिश करते थे। मगर आज ऐसा नहीं है और कोई एक साथ नहीं बैठता। आज हमें ऐसे लोगों व समाज की जरूरत है जो लोगों के चरित्र का निर्माण कर सके जो उस दिशा में उसे ज्ञान दे सकें कि यह-यह करने से आप सुखद जीवन जी सकते है और दूसरों के जीने के लिए रास्ते बना सकते हैं।
उन्होंने कहा हम मोबाइल व सोशल मीडिया से जितना दूर हो सकते हैं हमें होना चाहिए। मोबाइल ज्यादा प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है जोकि हमें आगे डॉक्टर के पास जाकर इसके बुरे असर का पता चलता है। उन्होंने कहा यह तकनीक है इसका लाभ उठाना चाहिए और इसके साथ-साथ चलना भी चाहिए, मगर इससे बचना भी उतना ही जरूरी है। हमारा दिमाग हमेशा ढोलता रहता है और यह सदैव चलता जा रहा है, मोबाइल लगातार इस्तेमाल से हमारा दिमाग शक्ति हीन हो रहा है जोकि हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का सामान्य अर्थ यह है कि अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ो : कैबिनेट मंत्री अनिल विज
कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने कहा कि पहले ज्ञान प्राप्त करने के माध्यम सीमित थे, जो पढ़ाया जाता था वहीं आगे बताते थे। हर अच्छे कार्य की शुरू ज्योति प्रज्जवलित करके होती है यानि ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का सामान्य अर्थ यह है कि अंधकार से प्रकाश की ओर चलो, बढ़ो। हमारे समय में मोबाइल, टीवी, टैब, इंटरनेट नहीं था। हम स्कूल की किताबों से पढ़ते थे जिसमें सीमित ज्ञान था। हम जब स्कूल-कालेज में थे तो स्टेट लाइब्रेरी में तीन-चार घंटे पढ़ते थे ताकि चीजों समझ सकें। मगर ज्ञान अथह है जिसे किताबों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। ज्ञान प्राप्त करने की ख्वाहिश हमेशा रहती है।