हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी… 27 अगस्त, 2012 को संसद परिसर में यह शेर पढ़ने वाले मनमोहन हमेशा के लिए खामोश हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री पद्म विभूषण डॉ. मनमोहन सिंह ने 26 दिसंबर को दिल्ली AIIMS में अंतिम सांस ली।
हमेशा आसमानी रंग की पगड़ी पहनने वाले मनमोहन ने 22 मई, 2004 को भारत के 14वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहा गया, लेकिन मनमोहन ने न सिर्फ 5 साल का कार्यकाल पूरा किया, बल्कि अगली बार भी सरकार में वापसी की।
संसद का सत्र चल रहा था। मनमोहन सरकार पर कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार का आरोप लगा। तब मनमोहन सिंह ने कहा कि कोयला ब्लाक आवंटन को लेकर कैग की रिपोर्ट में अनियमितताओं के जो आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं।
उन्होंने लोकसभा में बयान देने के बाद संसद भवन के बाहर मीडिया में भी बयान दिया। उन्होंने उनकी ‘खामोशी’ पर ताना कहने वालों को जवाब देते हुए शेर पढ़ा, ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी’…
लोकसभा में वोट के बदले नोट विषय पर विषय पर चर्चा हो रही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह विपक्ष पर सवालों पर जबाव दे रहे थे।
इस दौरान नेता विपक्ष सुषमा ने उन पर कटाक्ष करते हुए कहा था- तू इधर उधर की न बात कर, ये बता के कारवां क्यों लुटा; मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।
इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा था- ‘माना के तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो देख।’
मनमोहन सिंह के इस जवाब पर सत्ता पक्ष ने काफी देर तक मेज थपथपाई थी, वहीं विपक्ष खामोश बैठा रहा था।