December 27, 2024
manmohan singh abdul kalam

साल 2004, मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकसभा का पहला सेशन। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब नए प्रधानमंत्री को सदन में न तो अपने मंत्रियों के परिचय कराने की अनुमति दी गई और न ही उन्हें राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मौका मिला।

तब मुख्य विपक्षी पार्टी BJP शिबू सोरेन और उन नेताओं के मंत्री बनाए जाने का विरोध कर रही थी, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।

10 जून 2004, नई संसद के ओपनिंग सेशन का आखिरी दिन। लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने PM मनमोहन सिंह को बोलने के लिए इनवाइट किया, लेकिन विपक्ष ने इसकी अनुमति नहीं दी।

इससे डॉ. सिंह परेशान हो गए। उन्हें बेहद गुस्सा आया। उन्हें दुख हुआ कि विपक्षी दल BJP नए प्रधानमंत्री को सदन में बोलने नहीं दे रही। बाद में BJP न चाहते हुए भी प्रधानमंत्री के भाषण के लिए तैयार हो गई।

मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखते हैं- ‘इस घटना के बाद मनमोहन सिंह उदास मन से घर लौटे।

इसके बाद तय किया गया कि प्रधानमंत्री जो बयान सदन में देना चाहते थे, वो बयान टीवी के माध्यम से देश के नाम दिया जाएगा।

मुझे और मणि दीक्षित को प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन को री-ड्राफ्ट करने की जिम्मेदारी दी गई।

ड्राफ्ट तैयार करने के बाद, मैंने प्रधानमंत्री को सलाह दी कि वे टीवी पर भाषण देने से पहले टेलीप्रॉम्प्टर के सामने भाषण देने की प्रैक्टिस करें।

प्रधानमंत्री इसके लिए राजी भी हो गए। 7 रेस कोर्स रोड यानी प्राइम मिनिस्टर आवास में एक टीवी कैमरा इंस्टॉल किया गया।

PM हर दिन दोपहर में लंच करने के बाद एक घंटा कैमरे के सामने भाषण देने की प्रैक्टिस करते थे। दिन का काम पूरा होने के बाद मैं उन्हें रिकॉर्डिंग सुनाता था और उनकी गलतियों के बारे में बताता था, ताकि वे सुधार कर सकें।

उनकी आवाज बहुस सॉफ्ट थी। वे महत्वपूर्ण बात कहने के बाद, बिना पॉज लिए अगले वाक्य की तरफ बढ़ जाते थे।’

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