जीओ गीता के प्रणेता व गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि भारतीय शिक्षा में आचरण का विशेष महत्व है। वेदों एवं उपनिषदों में श्रेष्ठ पुरुष के आचरण को ही अनुकरणीय बताया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में निहित मूल्यपरक शिक्षा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का श्रेष्ठतम निर्माण कर सकती है। वे सोमवार को डिपार्टमेंट ऑफ होलिस्टिक एजुकेशन, चंडीगढ़ तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में कुवि के डॉ. आरके सदन में ‘वैश्विक विकास के लिए भारतीय शिक्षा प्रणाली’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय शिक्षा महाकुंभ के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इससे पहले दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
पूज्य स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था केवल मात्र बाह्य विकास तक ही सीमित नहीं रही है। सत्य यह है कि भारत ने कभी भी बाहर के विकास को समग्र विकास के रूप में स्वीकार भी नहीं किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य के भीतर दिव्यताएं हैं, बस आवश्यकता है कि भीतर का अर्जुन ही प्रकट रहे, भीतर कहीं दुर्योधन प्रकट न हो वो कार्य शिक्षा कर सकती है। हमें भविष्य की चिंता किए बिना वर्तमान में अपनी ऊर्जा को फोकस कर अपना कार्य क्षमताओं को बढ़ाना है। इस दो दिवसीय शिक्षा महाकुंभ का अमृत मंथन भारतीय शिक्षा को वैश्विक मंच पर विशेष पहचान दिलाने में सहायक होगा।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संगठक व प्रसिद्ध आर्थिक विशेषज्ञ सतीश कुमार ने कहा कि भारत को विश्व के अग्रणी राष्ट्र बनाने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की अहम भूमिका होगी। इसलिए एनईपी 2020 को सही प्रावधानों के साथ क्रियान्वित करने के लिए शिक्षकों को इसे सात्विक भाव के साथ आत्मसात करना होगा। इसके साथ युवा पीढ़ी को यह बताने की भी जरूरत है कि रोजगार की परिभाषा केवल सरकारी नौकरी नहीं है बल्कि स्वरोजगार एवं उद्यमिता ही रोजगार है जो नव भारत निर्माण एवं विकसित राष्ट्र का आधार है। उन्होंने कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा को पूरे भारत में एनईपी-2020 को लागू करने की बधाई दी।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतीय मूल्यों के साथ शिक्षा प्रदान करना एनईपी का उद्देश्य है। केयू ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को इसके सभी प्रावधानों साथ न केवल कैम्पस में बल्कि सभी संबंधित कॉलेजों में पूरे देश में सबसे पहले लगाया है। इसके तहत यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार मल्टी डिसीप्लिनरी कोर्सिज एबीलिटी एनहांसमेंट कोर्सिज, वेल्यू एडिड कोर्सिज स्किल वोकेशनल कोर्सेज, इंटर्नशिप को नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क के अनुसार पूरे एजुकेशनल सिस्टम में इंटीग्रेड किया गया है। भारतीय संस्कृति के अनुसार विद्यार्थियों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए कैम्पस में अंग्रेजी की बाध्यता को समाप्त किया है। विद्यार्थी अपनी परीक्षा को हिंदी में लिख सकते हैं।
इस अवसर पर गुरुग्राम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने कहा कि वर्तमान समय में संस्कृत भाषा की महत्ता को बताते हुए मूल्यपरक एवं कौशल विकास के माध्यम से विद्यार्थियों को शिक्षा देने की बात कही। वहीं केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेन्द्रगढ़ के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा कि भारत की शिक्षा प्रणाली पूरे विश्व का सही मार्ग प्रशस्त कर सकती है। सीबीएलयू की कुलपति प्रो. दीप्ति धर्माणी ने कहा कि शिक्षा ही व्यक्ति को मानव कल्याण के योग्य बनाती है तथा वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह निहित है।
अखिल भारतीय विद्या संस्थान के अवनीश भटनागर ने कहा कि भारतीय शिक्षा की संकल्पना ही वैश्विक कल्याण की भावना है। उन्होंने कहा कि भारत की दृष्टि से भारत को देखने की जरूरत है क्योंकि ज्ञान सार्वभौमिक है। शिक्षा सदैव राष्ट्रीय ही होगी तभी वह राष्ट्र की चुनौतियों व समस्याओं का समाधान कर पाएगी।
माय होम इंडिया के फाउंडर एवं राजनीतिज्ञ सुनील देवधर ने कहा कि गुरुकुल आश्रम में शिक्षा पद्धति के माध्यम से जीवन की व्यवहारिकता का अर्थ समझ में आता था। आज पाश्चात्य देश भारतीय संस्कृति का महत्व समझकर उसका अनुकरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योग को वैश्विक पहचान दिलाई है तथा आज विदेशों में योग की हर जगह चर्चा है। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सुदेश ठाकुर ने शिक्षा महाकुंभ की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा नोडल ऑफिसर एवं यूआईईटी निदेशक प्रो. सुनील ढींगरा ने सभी अतिथियों का स्वागत परिचय करवाया।