ब्रह्मसरोवर के पुरुषोत्तमपुरा बाग के मुख्य मंच पर शनिवार को नाटक हमारे राम का शानदार मंचन हुआ। इस मंचन में अभिनेता आशुतोष राणा ने रावण की भूमिका निभाई। तीन घंटे लंबे इस नाटक ने दर्शकों को भारतीय पौराणिक कथाओं के एक जटिल चरित्र रावण को नए दृष्टिकोण से समझने का अवसर दिया। रावण के किरदार को लेकर राणा की गहरी समझ और उनके भावपूर्ण प्रदर्शन ने दर्शकों को सम्मोहित कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्मसरोवर पुरुषोत्तमपुरा बाग में शनिवार को देर सायं हरियाणा कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग की तरफ से हमारे राम थीम को लेकर नाटक का मंचन प्रसिद्घ अभिनेता आशुतोष राणा द्वारा किया गया। इससे पहले पूर्व राज्यमंत्री सुभाष सुधा, चेयरमैन धर्मवीर डागर, चेयरमैन धर्मवीर मिर्जापुर, भाजपा के जिलाध्यक्ष सुशील राणा, सीईओ केडीबी पंकज सेतिया, मानद सचिव उपेंद्र सिंघल, 48 कोस तीर्थ निगरानी कमेटी के चेयरमैन मदन मोहन छाबड़ा, सदस्य विजय नरुला, प्राधिकरण के सदस्य सौरभ चौधरी ने दीप प्रज्जवलित करके सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ किया। इस दौरान केडीबी की तरफ से कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया।
प्रसिद्ध अभिनेता आशुतोष राणा ने नाटक में रावण का किरदार बेहद प्रभावशाली ढंग से निभाया है। उनकी संवाद अदायगी, उनकी भाव-भंगिमाएं और मंच पर उनकी उपस्थिति इतनी प्रबल थी कि दर्शक उनके साथ रावण के द्वंद्व, संघर्ष और अंतद्र्वद्व को महसूस कर रहे थे। तीन घंटे के इस नाटक में आशुतोष राणा ने रावण के चरित्र की गहराईयों को कुशलता से उभारा, जिसमें एक ओर वह अत्यंत ज्ञानी, विद्वान और तपस्वी के रूप में दिखे, तो दूसरी ओर एक अहंकारी, क्रोधी और शक्ति के प्रतीक के तौर पर भी। उनका निभाया किरदार ऐसा था कि एक तरफ तो वह श्रीराम को ललकार रहा है, लेकिन दूसरी ओर अंदर ही अंदर इसी के जरिए वह अपने ज्ञान और पांडित्य के अहंकार से भी मुक्त होना चाह रहा है। रावण को हमेशा एक नकारात्मक चरित्र के रूप में देखा गया है, लेकिन उसके व्यक्तित्व में कई परतें है, वह सिर्फ एक खलनायक नहीं था, बल्कि वह एक महान विद्वान, शिव भक्त और तपस्वी था। उसकी नकारात्मकता उसके अहंकार और वासनाओं से आई, लेकिन उसके भीतर भी ज्ञान और सच्चाई की तलाश थी।
उन्होंने नाटक के माध्यम से रावण की गहराई और उसके प्रति अपने दृष्टिकोण पर खुलकर प्रकाश डाला। उन्होंने नाटक में दिखाया कि रावण को नकारात्मक रूप में देखना उसकी महानता को कम आंकने जैसा है। रावण न केवल एक शक्तिशाली राजा था, बल्कि वह एक ज्ञानी और विद्वान भी था, जिसकी इच्छा आत्मज्ञान और मोक्ष से भी परे मुक्त होने की थी। रावण का अंत केवल मृत्यु नहीं था, बल्कि वह आत्मज्ञान और मुक्ति की खोज में था। उसका अंत उसके अहंकार का अंत था, और यह उसकी आध्यात्मिक यात्रा का समापन था। इस दृष्टिकोण से, रावण एक आदर्श विरोधाभास है, जहां वह बुराई का प्रतीक होने के बावजूद अंतत: ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।
नाटक में इस प्रतीकात्मकता को आधुनिक जीवन के संदर्भ में जोड़ते हुए कहा, आज हर व्यक्ति के भीतर रावण और राम दोनों है, यह हमारे ऊपर है कि हम किसे प्राथमिकता देते हैं. जब हम अपने भीतर की इच्छाओं और वासनाओं को नियंत्रित करते हैं, तभी हम सच्चे राम के अनुयायी बनते है। नाटक में आज के समय में अच्छाई और बुराई के बीच के संघर्ष को दर्शाया गया। वर्तमान युग में भी हर व्यक्ति इस द्वंद्व से गुजर रहा है. वह अच्छाई और बुराई के बीच उलझ रहा है। हमारे जीवन में भी राम और रावण का संघर्ष है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने भीतर के राम को जगह दें या रावण को। जब हम राम के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएंगे, तभी हम सच्चे अर्थों में सफल होंगे।