हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आज पंचकूला में आयोजित तीसरे पुस्तक मेले के उद्घाटन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की जीवनी पर आधारित पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ का विमोचन किया। इस पुस्तक का लेखन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग हरियाणा में कार्यरत जिला सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी कृष्ण कुमार आर्य ने किया है।
मुख्यमंत्री ने इस कार्य के लिए लेखक को बधाई और ऐसी कृति की रचना के लिए शुभकामनाएं दी। उन्होंने मेले में सभी पुस्तक स्टॉलों का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि पुस्तकें हमारी मार्गदर्शक होती है और अच्छी पुस्तकें तो हमारे जीवन की धारा को भी बदल देती है।
इसलिए सभी को पुस्तकों का स्वाध्याय नियमित तौर पर करना चाहिए। उनके साथ पुस्तक मेले के आयोजक एसईआईएए के चेयरमैन श्री पी के दास, कालका की विधायक श्रीमती शक्ति रानी शर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
लेखक कृष्ण कुमार आर्य ने पुस्तक के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि इस पुस्तक में श्रीकृष्ण की पूरी जीवनी को लिखा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जीवन का आधार कर्म है और कर्म की सिद्धि केवल कर्तव्य पालन के मार्ग से होकर ही गुजरती है। कर्महीन और कर्तव्य विमुख व्यक्ति कभी धर्मात्मा नहीं हो सकता है। उनके इसी उपदेश को श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित नव संकलित पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ में सहेजा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि
’’न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किश्चन।
नान वाप्तम वाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि’’
नान वाप्तम वाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि’’
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नहीं है अर्थात् करने योग्य नहीं है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न ही आवश्यकता है, फिर भी निष्फल भाव से कर्म करता हूँ। इसी को आधार बनाकर लेखक ने इस पुस्तक की रचना की है।
आर्य ने बताया कि पुस्तक में श्रीकृष्ण की जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए विषय-वस्तु को 244 पृष्ठों पर ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया गया है। इसमें लगभग 130 मंत्र, श्लोक एवं सूक्तियां तथा पुस्तक को समझने में सहायक आठ आलेख दिए हैं। पुस्तक का पहला अध्याय ‘श्रीकृष्ण की वंशावली’, दूसरे व तीसरे अध्याय में उनके बाल्यकाल की प्रमुख घटनाएं तथा अध्याय चार में गोपी प्रकरण व कंस वध का विवरण दिया है।
पुस्तक के पांचवें अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा महर्षि सांदीपनी एवं अन्य ऋषि आश्रमों में ग्रहण की गई ‘शिक्षाओं तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों’ का वर्णन किया गया है। यह अध्याय अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान तथा सुदर्शन चक्र, सौमधुक, मौनधुक, सौकिक यान एवं सोमतीति रेखा का अन्वेषण श्रीकृष्ण की महानता का परिचय देता हैं