सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि ब्रहाज्ञान की प्राप्ति के बाद मन की स्थिति स्थिरता व सुकून भरी होती है और भक्त सदैव परमात्मा की हर रजा में ही खुशी व सुकून महसूस करते है। चाहे वे चार पहिया वाहन पर हो या दो पहिया वाहन पर।
उनका मकसद केवल यात्रा करने का साधन या सुविधा तक ही सीमित होता है। उन्होंने समझाया कि सांसारिक साधनों का उपभोग करते हुए प्रभु परमात्मा को हर पल हर क्षण जीवन में एहसास करते हुए जीवन जीकर हम आध्यात्मिक व सामाजिक जीवन में एकरसता ला सकते हैं।
सतगुरु माता जी ने फरमाया कि व्यवहार में गुस्सा या कटुता में कैसे संतुलन बनाकर मधुरता लानी है, परमात्मा का बोध हमें सही चुनाव व चयन करना सिखाता है। उन्होंने सभी से प्रकृति को साफ सुंदर, स्वच्छ व निर्मल बनाने का भी आग्रह करते हुए कहा कि जब जन्म के समय हमें सुंदर स्वरूप में प्रकृति मिलती है तो इसे सुंदर छोड़कर जाने का सामाजिक दायित्व भी हम सबको निभाना है।
इससे पूर्व निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने विचारों में सबसे पहले सभी श्रद्धालुओं को दो सप्ताह बाद समालखा स्थित निरंकारी अध्यात्मिक स्थल पर आयोजित होने वाले 77वें निरंकारी वार्षिक संत समागम की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि प्रत्येक संत श्रद्धालु यही कामना करता है कि जिस प्रकार उनके जीवन में ब्रह्म ज्ञान द्वारा रोशनी आने से अंधेरी राहें मिट गई है।
उसी प्रकार सारी मानव जाति ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति कर, अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर हो जाए। जब हम अंधकार से प्रकाश की ओर जाते हैं तो हमारे जीवन में आने वाली ठोकरें मिट जाती हैं। इसी प्रकार ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के बाद मानव की मनोस्थिति में परिवर्तन हो जाता है तथा वो सबके भले की कामना करता है। उन्होंने कहा कि सत्य, प्रेम, मानवता ही सर्वोच्च धर्म है।