पुलिस अधीक्षक करनाल मोहित हाण्डा के निर्देशानुसार आज थाना यातायात टीम द्वारा उप निरीक्षक सतपाल सिंह की अध्यक्षता में गुरू कृपा टैक्सी स्टैंड नजदीक सांई मंदिर करनाल और रेता चौंक मेरठ रोड़ करनाल पर वाहन चालकों को दुर्घटना होने पर घायल व्यक्तियों को जल्द से जल्द चिकित्सा सहायता देने व अस्पताल पहुंचाने के लिए जागरूक किया गया।
उप निरीक्षक सतपाल सिंह द्वारा वाहन चालकों से कहा गया कि हम सभी को नेक व्यक्ति बनने के आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नेक व्यक्ति से अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों से है जो सद्भावपूर्वक, स्वेच्छा से तथा बिना किसी पुरस्कार या मुआवजे की अपेक्षा के दुर्घटना स्थल पर पीड़ित को आपातकालीन चिकित्सा या गैर-चिकित्सा देखभाल या सहायता प्रदान करता है या ऐसे पीड़ित को अस्पताल पहुंचाता है।
उन्होंने कहा कि इसके लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा नेक व्यक्ति को पुरस्कार प्रदान करने की योजना भी चलाई गई है। जिसके तहत यदि कोई नेक व्यक्ति किसी घायल व्यक्ति की जान बचाता है तो ऐसे व्यक्ति को प्रशंसा प्रमाण पत्र व 5000 रूपये का पुरस्कार भी दिया जाएगा।
सतपाल सिंह ने कहा कि दुर्भाग्य से भारत में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मौतें होती हैं। देश में तीन-चौथाई लोग पुलिस उत्पीड़न, अस्पतालों में जाने से रोकने और लंबी कानूनी औपचारिकताओं के डर से सड़क पर घायल दुर्घटना पीड़ितों की मदद करने से हिचकिचाते हैं। यदि कोई मदद करना भी चाहता है, तो इन्हीं कारकों के कारण वे ऐसा नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 15 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है।
भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 50 प्रतिशत पीड़ितों की मृत्यु ऐसी चोटों के कारण हुई जिनका उपचार किया जा सकता था, अगर उनकी समय पर देखभाल की जाती तो उन्हें बचाया जा सकता था। पीड़ित को आपातकालीन देखभाल उपलब्ध कराने में दुर्घटना स्थल के आसपास के लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन भारत में कानूनी नतीजों और प्रक्रियागत परेशानियों के डर से आमलोग घायलों की मदद करने से हिचकिचाते हैं।
उन्होंने कहा कि आप सभी वाहन चालकों का ज्यादातर समय सड़कों पर व्यतीत होता है और कई बार आपके आसपास या आपके साथ भी सड़क दुर्घटना हो चुकी है व आपने ऐसे हादसों में बहुत से लोगों को जान गवाते भी देखा, जिनमें कई बार कोई अपना भी होता है। लेकिन इस सब में कुछ ऐसे लोग भी शामिल होते हैं, जिन्हें यदि समय पर चिकित्सा सहायता मिल जाती या उन्हंे अस्पताल पहुंचा दिया जाता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। पिड़ितों की मदद करने के लिए ठोस मंशा की आवश्यकता है, तो आईए किसी की जान बचाने का संकल्प लें व इसे अपनी नैतिकता के रूप में अपनाएं और एक अच्छे नागरिक होने का कर्तव्य निभाएं।