वाइस एडमिरल तरूण सोबती ने कहा कि वैश्विक दौर में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। वर्तमान दौर में जलवायु परिवर्तन, व्यापारिक सुरक्षा तथा सतत् विकास महत्वपूर्ण पहलू हैं। इजरायल, हमास, लेबनान, रूस व यूक्रेन आदि देशों के बीच युद्ध से इंडो पैसिफिक क्षेत्र में नई चुनौतियां पैदा हुई हैं।
वे सोमवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज व भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के इंडो-पैसिफिक डिवीजन के संयुक्त तत्वावधान में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास विषय पर आयोजित दो दिवसीय उच्च स्तरीय तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारत अपनी सक्षम विदेश नीति के माध्यम से विवेकपूर्ण कूटनीतिज्ञ निर्णय लेकर इंडो पैसिफिक क्षेत्र में आ रही चुनौतियों का सामना कर रहा है। श्रीलंका, मालद्वीव आदि देशों पर भारत की कूटनीति का गहरा प्रभाव पड़ा है। आने वाले दिनों में इसके और अधिक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है 2050 तक विश्व के अनेक द्वीप जलमग्न हो जाएंगे जिनमें भारत से सटे देशों में मालद्वीप भी शामिल है। उन्होंने कहा कि भारतीय जलसेना सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। पिछले एक दशक में भारतीय जलसेना ने अनेक चुनौतियों का सामना कर जहां एक ओर पड़ोसी देशों की सहायता की है वहीं पर व्यापारिक जलमार्ग में जहाज़ों को सुरक्षा प्रदान कर नए आयाम स्थापित किए हैं।
भारत में दक्षिण अफ्रीका के उच्चायुक्त प्रो. अनिल सूकलाल ने कहा कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र में ग्लोबल सप्लाई चैन पर व्यापारिक दृष्टि से गहरा असर पड़ा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति एवं कूटनीति से भारत ने इंडो पैसिफिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पूरे विश्व में भारत की गरिमा को बढ़ाने का कार्य किया है।
राजदूत संजय पांडा ने कहा कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र में वैश्विक व्यापारिक चुनौतियां आज पूरे विश्व के सामने उभर रही हैं। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है। इंडो पैसिफिक क्षेत्र में ब्लू ओश्यिन के माध्यम से विकास के नए रास्तों को अंजाम दिया जा सकता है। इस क्षेत्र में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि वर्तमान दौर में विश्व के सामने व्यापारिक एवं जलवायु परिवर्तन की जो चुनौतियां हैं उनके प्रति भारत ने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर अपने पड़ोसी देशों से आंतरिक संबंधों को मजबूत कर पूरे विश्व को यह संदेश दिया है कि समस्याओं एवं चुनौतियों का समाधान युद्ध में नहीं अपितु कूटनीति से निकाला जा सकता है।
इस अवसर पर उन्होंने सभी विदेशी मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय भारत का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जो शोध, संस्कृति, खेल में तो अग्रणी है ही इसके अतिरिक्त पूरे भारत में नई शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला विश्वविद्यालय भी है।
वायस एडमिरल एके चावला ने कहा कि विश्व की 64 प्रतिशत जनसंख्या और 60 प्रतिशत वैश्विक जीडीपी इंडो-पैसिफिक में उत्पन्न होती है, जिसमें दुनिया की छह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ अमेरिका, चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
एडमिरल आरके धवन ने कहा कि कहा कि वर्तमान में इंडो-पैसिफिक सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र बन चुका है। भारत के इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के माध्यम से हर साल दक्षिण चीन सागर से लगभग 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की वाणिज्यिक शिपिंग और ऊर्जा आपूर्ति इस रास्ते से होती है।
केन्द्र के निदेशक प्रो. वीएन अत्री ने सभी अतिथियों का स्वागत किया व दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के बारे में विस्तार से बताया। मंच का संचालन डॉ. निधि बगरिया ने किया। प्रो. अशोक चौहान ने सभी अतिथियों का धन्यवाद प्रकट किया।
इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. संजीव शर्मा, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. दिनेश कुमार, निदेशक प्रो. वीएन अत्री, प्रो. एसके चहल, प्रो. अशोक चौहान, प्रो. अमित लूदरी, प्रो. ब्रजेश साहनी, प्रो. तेजेन्द्र शर्मा, प्रो. प्रीति जैन, प्रो. संजीव बंसल, प्रो. अनिल मित्तल, लोक सम्पर्क विभाग के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया, उप-निदेशक डॉ. जिम्मी शर्मा, डॉ. हेमलता शर्मा, डॉ. अर्चना चौधरी, डॉ. प्रिया शर्मा, डॉ. नीरज बातिश सहित भारी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद थे।