हरियाणा में छठे चरण में सभी 10 सीटों पर वोटिंग हो गई। मतदान 65 फीसदी हुआ। इन 10 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है। 2009 में इन 10 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 67.51% रहा।
2014 में मतदान 3.94 फीसदी से अधिक बढ़कर 71.45% प्रतिशत पहुंच गया। साल 2019 में इस वोटिंग प्रतिशत 1.11 प्रतिशत की गिरावट आकर 70.34% चला गया। इस बार ये आंकड़ा 65.00 फीसदी ही रह गया, यानी 2019 के मुकाबले करीब 5.34 फीसदी कम।
आंकड़ों को यदि हम देखें तो 2014 और 2019 के चुनावी मुकाबले में बंपर वोटिंग भाजपा के पक्ष में गई, इस बार कम वोटिंग को लेकर कांग्रेस पॉजिटिव दिख रही है।
आमतौर पर हरियाणा में परसेप्शन है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़े तो राज्य सरकार को टेंशन हो जाती है। वहीं लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है।
कम होने पर कांग्रेस फायदा उठाकर ले जाती है। ऐसे में इस बार वोटिंग के कम प्रतिशत ने भाजपा और कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
सवाल ये भी है कि कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा। सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में बड़ा अंतर रहा है। इस कारण से कांग्रेस पिछले दो बार से लगातार हार का मुंह देख रही है। हालांकि इस बार कम वोटिंग को लेकर भी कांग्रेस कुछ ज्यादा आशान्वित नहीं दिख रही है।