अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव-2025 में पहली बार पर्यटकों को वैदिक शिक्षा पद्धति, विज्ञान और आयुष पद्धति का ज्ञान मिलेगा। इस महोत्सव में आने वाले पर्यटकों को विद्या शोध संस्थान की तरफ से गुरुकुल शिक्षा पद्धति का पाठ पढ़ाने के लिए पहली बार एक मंच सजाया है। इस मंच पर प्राचीन कला पर आधारित 16 से ज्यादा स्टॉल तैयार किए गए है।
इन स्टॉलों में प्राचीन काल में 0 से 100 वर्ष तक के आयु वर्ग के लोगों की दिनचर्या को अनोखे अंदाज में दिखाने का प्रयास किया गया है। अहम पहलू यह है कि विद्या शोध संस्थान के संचालक स्वामी संपूर्णानंद महाराज स्वयं गुरुकुल शिक्षा पद्धति का ज्ञान देने के लिए महोत्सव में पहुंचे हुए है।
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव-2025 में पहली बार दक्षिण दिशा में वीवीआईपी घाट पर विद्या शोध संस्थान की तरफ से लोगों को गुरुकुल शिक्षा पद्धति और प्राचीन आयुष पद्धति का ज्ञान देने के लिए स्टॉल लगाए गए है। इन सभी स्टॉलों की प्राचीन समय के हिसाब से साज-सज्जा भी की गई है और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया भी गया है। इस वीवीआईपी घाट के आगे से गुजरने वाले हर व्यक्ति के पांव सहजता से रुक जाते है और इन स्टॉलों का अवलोकन करके प्राचीन गुरुकुल पद्धति से अपने ज्ञान में वृद्धि करते है।
स्वामी संपूर्णानंद महाराज ने विशेष बातचीत करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने मानव जाति के कल्याण के लिए गीता का उपदेश दिया था। विद्या शोध संस्थान कुरुक्षेत्र द्वारा सनातन संस्कृति रक्षक प्रदर्शनी का आयोजन कर नागरिकों को गुरुकुल शिक्षा पद्धति व 16 संस्कारों से अवगत करवाया जा रहा है।
संपूर्णानंद महाराज ने कहा कि इस प्रदर्शनी के माध्यम से 0 से 100 वर्ष तक की आयु तक के जीवन को विभिन्न भागों में बांटकर प्रदर्शित किया गया हैं। इसके साथ ही समाज के उत्थान के लिए गुरुकुल में दी जाने वाली शिक्षा पद्धति को शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में समाज में संस्कार विलुप्त होते जा रहे है। युवाओं और आने वाली पीढ़ी में संस्कारों को लेकर पूरा संसार चिंतित है। जबकि संस्कारों को देने के लिए प्रयत्न ही नहीं किए जा रहें। हमारे सनातन संस्कृति व वैदिक धर्म में 16 प्रकार के संस्कार होते है। इनमें से 3 संस्कार तो जन्म से पहले ही दिए जाते है।
संस्कार का अर्थ दुर्गुणों को हटाकर सद्गुणों को डालने से है। बुराइयों को मिटाकर अच्छाइयां लाना है। महर्षि चरक ने संस्कार की परिभाषा दी है कि गुणों को आधार कर देना और दुर्गुणों को मिटा देना और 16 संस्कारों का मतलब है कि मनुष्य को 16 बार उन्नत और परिवर्तित करने से है।