
कौन कहता है कि मातृभाषा पढ-सिखकर आगे नहीं बढा जा सकता है, हम भी अपनी मातृ भाषा हिन्दी को पढक़र आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि मातृभाषा से हमें प्रेम, प्यार, स्नेह होता है और उससे आर्शीवाद मिलता है।
यह उदगार हरियाणा के ऊर्जा, परिवहन एवं श्रम मंत्री अनिल विज ने गत दिवस एक कार्यक्रम के दौरान हिन्दी दिवस के अवसर पर व्यक्त किए।
विज ने साफगोई व्यक्त करते हुए कहा कि आज हिन्दी को बोलते हुए हमें थोड़ी अहीनता का भाव आता है क्योंकि कई वर्षों तक हमें अरबी व अंग्रेजी पढ़ाई गई और आज अपने देश में हम अंग्रेजी को बोलना एक स्टेटस मानने लगे हैं, जबकि अंग्रेजी चुराई भाषा है और हमारी अपनी भाषा भी नहीं है।
अंग्रेजी बोलने वालों को हम समाज का उच्च वर्ग मानने लग गए हैं जबकि हिंदी हमारी अपनी भाषा है इसे बोलने पर हमें अपनेपन का भाव आता है, संस्कार आते है और हिन्दी बोलने से हमें हमारी संस्कृति की अनुभूति भी होती हैं।
एकटक ऊर्जा मंत्री को सुन रहे उपस्थितजनों विज ने प्रश्न उठाते हुए कहा कि मुझे आश्चर्य होता है कि हिंदुस्तान में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है जोकि हिंदी की जन्मदाता धरती है और क्या हमें हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ करना पडेगा, जोकि गलत है।
विदेशी लोगों ने हमारे देश में तय कर दिया कि अंग्रेजी ही सबसे उच्च भाषा है, मगर यह हकीकत नहीं है।
विज ने कई देशों के उदाहरण देते हुए बताया कि इंग्लैंड के साथ ही पेरिस है मगर पेरिस में आप अपनी दुकान का बोर्ड अंग्रेजी में लिखकर नहीं लगा सकते। फ्रांस में फ्रेंच भाषा है और फंास के लोगों ने फ्रेंच पढ़कर ही तरक्की की है।
इसी तरह, चीन में चीनी भाषा पढ़कर चीन ने तरक्की की है। तो, जर्मनी ने जर्मन भाषा पढ़कर तरक्की की जर्मनी के लोगों ने जहाज, पनडुब्बियां बनाए व तरक्की की, वह जर्मन भाषा को पढ़कर ही की है। इसी तरह, जापान व अन्य देशों ने भी अपनी भाषा को पढकर तरक्की की है।
द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह होने के बावजूद जापान ने अपने देश की भाषा पढ़कर तरक्की की है न कि चोरी की भाषा से। इसी प्रकार, अन्य देशों ने भी अपनी भाषा पढ़कर तरक्की की है।
ऊर्जा मंत्री अनिल विज ने कहा कि जब हम अपनी मातृभाषा कहते है तो मां की ममता का आर्शीवाद भी साथ होता है। मातृभाषा को समझने और कुछ करने में भी आसानी है। मगर हमारे साथ खिलवाड़ हुआ है, अंग्रेज लार्ड मैकाले ने हिंदुस्तान का भ्रमण करने के बाद अपनी संसद में जाकर भाषण दिया कि उसने हिंदुस्तान में पूरा भ्रमण किया और किसी भी व्यक्ति को भीख मांगते या भूखा मरते नहीं देखा।
मैकाले ने कहा था कि हिंदुस्तान की संस्कृति समृद्ध है और जब तक हम हिंदुस्तान की संस्कृति पर प्रहार नहीं करेंगे तब तक हम हिंदुस्तान में ज्यादा नहीं टिक पाएंगे। अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा, भाषा पर प्रहार किए। जबकि हमारी शिक्षा की गुरूकुल व्यवस्था थी, जहां शिक्षा के साथ संस्कार भी दिए जाते थे। आज की शिक्षा और गुरूकुल की शिक्षा में अंतर है।
आज की शिक्षा किताबी ज्ञान है और गुरुकुल शिक्षा में संस्कार दिए जाते थे जिसमें छोटे-बड़ों का आदर सिखाया जाता था। आज किसी स्कूल में संयुक्त परिवार के बारे में नहीं सिखाया जाता, मगर पहले गुरुकुल में सिखाया जाता था। हम अपने आपको भूलकर आज आकाश में गोते खा रहे हैं।
आज हमारे दिमाग में अंग्रेजी छा गई है। उन्होंने मंच के माध्यम से यह भी कहा कि जब जर्मन के डॉक्टर जर्मनी भाषा पढ़कर आप्रेशन कर सकते है, फ्रांस के इंजीनियर फ्रैंच पढ़कर अच्छे जहाज बना सकते है। यदि इंजीनियरिंग व मेडिकल की किताबें हिंदी में लिखी जाए तो हम आगे क्यों नहीं बढ सकते। हम क्यों अच्छे जहाज नहीं बना सकते। हम भी अपनी मातृ भाषा हिन्दी को पढक़र आगे बढ़ सकते हैं।
मातृभाषा से हमें प्रेम, प्यार, स्नेह होता है और उसे आर्शीवाद मिलता है। हम अपने देश में हिंदी दिवस मनाकर अपने कर्तव्य का पालन कर देते है जबकि हमें केवल हिंदी दिवस मनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। हिंदी को जीवन का हिस्सा बनाना होगा और आने वाली पीढ़ियों को मातृभाषा के प्रति गर्व और सम्मान का संस्कार देना होगा। यही हमारे राष्ट्र के उत्थान का मार्ग है।