November 24, 2024
बिल्डर द्वारा शासन प्रशासन से मिलीभगत कर घाआमडोज के किसानों की जमीन हथियाने की कोशिश के मामले में 20 तारीख से आंदोलन का बिगुल फूंका जाएगा। भिवानी में आयोजित होने वाली संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में आगामी आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
भारतीय किसान यूनियन ( टिकैत) के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान ने प्रेस को विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि शासन प्रशासन के दबाव से बिल्डर गुरुग्राम के गांव घाआमडोज के किसानों की जमीन हड़पने की कोशिश कर रहे हैं। चेतावनी के बाद भी सरकार किसानों के साथ जबरदस्ती करने से बाज नहीं आ रही है।
बिल्डर द्वारा घाआमडोज के किसान की जमीन हथियाने के आरोप को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने मंगलवार को सांकेतिक तौर पर सोहना टोल टेक्स पर घेरा डाल नारेबाजी की थी। भारतीय किसान यूनियन ( टिकैत) के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान किसानों के समर्थन में पहुंचे थे और प्रशासन को चेताया था कि यदि किसान के साथ पुनः अत्याचार किया तो आर पार की लड़ाई के लिए प्रदेश सरकार तैयार रहे, लेकिन इसके बाद भी पुलिस बिल्डर के दबाव में आकर किसानों की गिरफ्तारी के लिए दबिश दे रही है।
किसानों के बच्चों और महिलाओं सहित किसानों के रिश्तेदारों तक को टार्चर किया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में चर्चा के बाद सरकार को इस कुत्सित उत्पीड़न का मूंह तोड़ जवाब देंगे। किसान टोल टेक्स और सड़कें जाम करेंगे और जेल भरो आंदोलन भी चलाएंगे। इस तानाशाही का डटकर मुकाबला करेंगे।
भाकियू के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान ने कहा कि किसानों ने गुरुग्राम के एसडीएम सोनू भट्ट को इस ज्यादती के खिलाफ ज्ञापन सौंपा था। उन्होंने सरकार की तरफ से भरोसा दिया था कि कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा, लेकिन पुलिस का अत्याचार जारी है।
मुख्यमंत्री के नाम दिए ज्ञापन के माध्यम से भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान ने कहा था कि किसान की जमीन बिल्डर द्वारा मुकदमेबाजी के माध्यम से छीनने का अवैध प्रयास किया जा रहा है। किसान द्वारा दर्ज कराया गया केस पुलिस ने रद्द कर दिया है व किसान के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज कर दिए गए हैं, जो बिलकुल नाजायज हैं व मिलीभगत के साक्षात प्रमाण हैं।
ज्ञापन के माध्यम से गुरुग्राम के धाआमडोज जमीन के मामले में भारतीय किसान यूनियन ने आंदोलन की चेतावनी दी थी, जिसकी समय अवधि खत्म होने वाली है और मसले के निपटान के कोई प्रयास सरकार की तरफ से नहीं किए गए। अगर पीडि़त किसान को न्याय नहीं मिला तो भारतीय किसान यूनियन आंदोलन करने को मजबूर होगी और आंदोलन में जो भी क्षति होगी उसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

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