कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा है कि उपन्यास जीवन की यथार्थवादी सत्य को प्रस्तुत करता है तथा जीवन की संजीदगी का तुलनात्मक अध्ययन देखने को मिलता है।
वे बुधवार को केयू फैकल्टी लॉज में पंजाबी विभाग द्वारा प्रो. जसविन्द्र सिंह के नवीन उपन्यास सुरख साज के विमोचन एवं आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि प्रो. जसविंदर सिंह ने इस उपन्यास के माध्यम से पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता का बहुत ही संजीदा तरीके से तुलनात्मक अध्ययन किया है, इस उपन्यास के माध्यम से भारत के आपसी भाईचारे, प्रेम, भावनाओं, विचारशील समाज, सामाजिक शिष्टाचार और बड़ों के सम्मान पर प्रकाश डाला गया तथा यह उपन्यास निवासियों और अप्रवासियों के जीवन की यथार्थवादी प्रस्तुति करता है।
उन्होंने विद्यार्थियों को अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभव साझा कर पूर्वी एवं पश्चिमी देशों की स्थिति से अवगत कराया।
कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ ने कहा कि पश्चिम जाना हमारी समस्याओं का समाधान नहीं है, हमें यहीं अपने देश में रहकर आत्मनिर्भर हो राष्ट्र के विकास में अहम योगदान देना है। उन्होंने छात्रों को ईमानदारी से अपने लक्ष्य का पीछा करने के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा सहित सभी अतिथियों ने इस उपन्यास का विमोचन करते हुए प्रो. जसविन्द्र सिंह को बधाई दी। कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।
सेमिनार की शुरुआत में पंजाबी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह ने सेमिनार में आए अतिथियों और प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि सुरख साज़ उपन्यास एक सघन कथात्मक रचना होने के बावजूद विभिन्न सरोकारों की सौम्य और गंभीर प्रस्तुति देता है।
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के प्रोफेसर मनजिंदर सिंह ने बतौर बीज वक्ता कहा कि जो गैर-अप्रवासी लेखक अप्रवासी जीवन के बारे में लिखता है वह सच्चा साहित्यकार है, क्योंकि वह दूसरों के अनुभव से सीखकर जीवन जीता है।
उन्होंने कहा कि यह उपन्यास अमेरिका में पंजाबी प्रवासी की जटिलताओं का एक विहंगम
दृश्य प्रस्तुत करता है। उपन्यास का विषय जहां दो देशों की समानता की बात करता है, वहीं संस्कृतियों की विविधता को भी दर्शाता है।
प्रो. जसविंदर सिंह ने कहा कि उपन्यास में पहली बार पंजाबी के गैर-पंजाबी या सिख धर्म होने की बात करके दिखाया कि पंजाबी होने का मतलब किसी खास धर्म से नहीं बल्कि एक खास संस्कृति से है। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास सांस्कृतिक संघर्षों के बारे में बात करता है लेकिन पंजाब की संस्कृति में जाति आधारित मूल्यों और धर्म के बीच प्रेम का कोई स्थान नहीं है।
उन्होंने कहा कि लेखक द्वारा इस उपन्यास के माध्यम से संस्कृति की समस्याओं पर उंगली उठाई है। यह उपन्यास पंजाबी संस्कृति और पंजाबी आदमी की मानसिकता और जटिलता की कहानी है, जिसका समाधान पंजाबी आदमी के पास नहीं है।
प्रो जसविंदर सिंह ने छात्रों को साहित्य से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हुए समकालीन पंजाबी जातियों के लेखन पर गहरी चिंता व्यक्त की।