डीसी कैप्टन मनोज कुमार ने क्वालिटी मार्किंग सेंटर में अचानक छापा मारा। यहां पर करोड़ों की जर्जर मशीनों को देखकर वह हैरान रह गए। उपायुक्त को इस दौरान विभाग की डिप्टी डायरेक्टर रेणू माथुर व तकनीकी सहायक कुलदीप ने उनको विभाग के बारे में काफी जानकारी दी, लेकिन उनके तर्कों से डीसी संतुष्ट नहीं थे।
डीसी ने कहा कि यहां की व्यवस्था ठीक नहीं है। काफी समय से सेंटर पर नियमित काम नहीं हो पा रहा है। करोड़ों की मशीनरी जर्जर हालत में है। ब्यालर विभाग में मौके पर तकनीकी विशेषज्ञों की जगह सेवादार मिले।
पूरी अव्यवस्था के बारे इंडस्ट्री के डायरेक्टर को कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा। बता दे कि जिले में प्लाईवुड व अन्य यूनिटों में एक हजार से अधिक करीब छोट बड़े बॉयलर हैं। कई बार हादसे भी हो चुके हैं।
यहां पर तीन विभाग ,तीनों में अव्यवस्था मिली
जगाधरी बस अड्डा के सामने क्वालिटी मार्केटिंग की जर्जर भवन में तकनीकी, मार्केटिंग व बॉयलर विभाग चलते हैं। तीनों विभागों के बिजली के मीटर अलग-अलग लगे हैं। डीसी को मौके पर केवल बिजली के मीटर ही चलते मिले। अन्य मशीनें चलने की हालत में भी नहीं थी। यहां 17 कर्मचारियों के पद हैं, मौके पर चार से पांच कर्मचारी तैनात हैं।
डिप्टी डायरेक्टर रेणू माथुर ने बताया कि उनकी नियुक्ति करीब पांच साल पहले हुई थी। इस भवन को वर्ष 2010 में कंडम घोषित कर दिया। उन्होंने डीसी के सामने यह भी स्वीकार किया कि मशीनें भी कंडम हो गई है। डीसी ने तीनों विभागों की लैब व कार्यशाला की जांच की और यहां मशीनों की दुर्दशा को देखकर डिप्टी डायरेक्टर से सवाल किया। वह संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई।
तकनीकी विशेषज्ञ से नहीं चला रोंदा
लैब में डीसी पहुंचे तो उन्होंने तकनीकी विशेषज्ञ से यहां होने वाले कार्य की जानकारी ली। विशेषज्ञ ने बताया कि देहरादून एफआइआर से आए व स्थानीय बोर्ड के मानकों के साथ जांच की जाती है।
यहां डीसी को स्थानीय कोटिड बोर्ड व एफआइआर से आया प्लेन बोर्ड दिखाई दिया। इसकी तुलना करने के बारे में पूछा तो तकनीकी एक्सपर्ट ने बताया कि स्थानीय बोर्ड पर रोंदा मारकर साफ कर दिया जाता है। डीसी के कहने पर एक्सपर्ट ने रोंदा चलाने की कोशिश की, लेकिन अच्छे से नहीं चला पाए।
दो एकड़ में फैला 50 साल पुराना सेंटर
जिले में बर्तन व प्लाई बोर्ड का अच्छा कारोबार है। क्वालिटी मार्केटिंग सेंटर 50 साल पहले यहां पर स्थापित किया गया। इसमें करोड़ों की मशीन लगाई गई थी। वर्तमान में अधिकतर मशीनों पर धूल जमी है। ऐसी-ऐसी मशीनें थी। जिससे जांच के बाद पता चल जाता था कि एक बर्तन में किस तरह की धातुओं का इस्तेमाल कितनी मात्रा में किया गया।
सेंटर में टूल रूम एंड ट्रेनिंग सेंटर खुलने से व्यापारियों को लाभ होता। उद्यमियों को डाई बनवाने और उसकी मरम्मत के लिए दिल्ली व लुधियाना जाना पड़ रहा है। अत्याधुनिक मशीनें आने से युवाओं को प्रशिक्षण मिलता। इंडस्ट्री को प्रशिक्षित कर्मचारी मिलते।