हरियाणा की धरती आदि काल से ही ऋषि-मुनियों की साधना एवं तप स्थली रही है। महर्षि दुर्वासा, महर्षि जमदग्रि, महर्षि भृगु, महर्षि च्यवन, महार्षि उद्ïदालक, महर्षि पिप्पलाद, महामुनि मयंक्शाक, महामुनि कपिल एवं महर्षि कृष्णा द्वैपायन आदि के आश्रम इसी प्रदेश में थे। वैदिक संस्कृति का उन्मेशस्थल ब्रहमवर्त (कुरूक्षेत्र) हरियाणा प्रदेश की दो देव नदियों सरस्वती एवं दृषद्ïवती के अन्तराल में ही स्थित था।
ब्रहमवर्त में ही चैत्ररथ नाम का वह वन था, जिसका वर्णन महाभारत में भी मौजूद था। इसी के समीप सरस्वती के दूसरे किनारे पर औशनस नाम का सुप्रसिद्घ तीर्थ था। कपाल मोचन के नाम से प्रसिद्घ औशनस नामक इस तीर्थ में शुक्राचार्य ने तप किया था। शुक्राचार्य का नाम उशनस था।
अत: यह स्थान उन्हीं की तपस्थली के नाम से अर्थात औशनस नाम से विख्यात हो गया। स्कन्ध महापुराण के अनुसार औशनस तीर्थ अर्थात कपाल मोचन द्वैतवन में स्थित था। द्वैतवन, जिसमें बद्री और सिंधु नाम के दो उपवन थे, पवित्र सरस्वती और यमुना नदी के मध्यवर्ती प्रदेश में स्थित था।
आदि काल में ब्रहमा जी ने इसी द्वैतवन में यज्ञ किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं एवं ऋषि-मुनियों ने भाग लिया था। ब्रह्मï जी ने पदम काल में यज्ञ करवाने के लिए तीन हवन कुण्ड बनवाए थे, जो प्लक्ष, सोम सरोवर व ऋण मोचन के नाम से प्रसिद्घ हैं। यज्ञ के दौरान एक ब्राह्मïण का लड़का ऋषि-मुनियों की सेवा किया करता था।
यज्ञ के पश्चात ब्रहमा जी ब्रहमलोक चले गए तथा ऋषियों-मुनियों ने भी अपने-अपने गंतव्य स्थान पर जाने की तैयारी कर ली। ऋषियों-मुनियों ने ब्राहमण के लडके से कहा कि उनके स्नान हेतु सरस्वती नदी से पवित्र जल ले आओ। लडके ने जल लाने में आना-कानी की जिसे ऋषियों-मुनियों ने भांप लिया। ऋषियों-मुनियों के श्राप के डर से वह सरस्वती नदी से स्नान हेतु जल लेने चला गया तथा वह वहंा से काफी देर में लौटकर आया।
तब तक ऋषियों-मुनियों ने अपने गन्तव्य स्थान पर जाने की तैयारी कर ली थी। उन्होंने वह जल उस ब्राह्मïण के लड़के के ऊपर दे मारा। उसमें से कुछ जल यज्ञ हवन कुण्ड में गिर गया। देरी से आने के कारण ऋषियों-मुनियों ने ब्राह्मïण के लड़के को श्राप दिया कि तूं कभी गाय के पेट से जन्म लेगा तथा कभी ब्राह्मïण के रूप में।
लड़के ने ऋषियों-मुनियों से पूछा कि हे मुनियों तब मेरा उद्घार कैसे होगा। ऋषियों-मुनियों ने कहा कि हवन कुण्ड में पड़ा जल ही तेरा सातवें जन्म में गाय के पेट से पैदा होने के बाद उद्घार करेगा। यज्ञ हवन कुण्ड में ऋषियों द्वारा फैंके गए जल में अमृत उत्पन्न हुआ और ऋषियों-मुनियों ने इसका नाम सोमसर रखा।
समय बीतता गया और द्वैतवन में ही वह लड़का कभी ब्राह्मïण के घर तथा कभी उस ब्राह्मïण की गाय के पेट से पैदा होता रहा। इसी दौरान कलयुग के प्रभाव के कारण ब्रह्मïा अपनी पुत्री सरस्वती के प्रति मन में बुरे विचार रखने लगा, जिससे बचने के लिए सरस्वती ने द्वैतवन में शंकर भगवान से शरण मांगी। सरस्वती की रक्षा के लिए शंकर भगवान ने ब्रह्मïा का सिर काट दिया, जिससे भगवान शंकर को ब्रहम हत्या का पाप लगा।
इससे शंकर भगवान को ब्रहम कपाली का दोष लगा। सब तीर्थो में स्नान व दान इत्यादि करने से भी वह चिन्ह दूर नहीं हुआ। घूमते-घूमते शंकर भगवान पार्वती सहित सोमसर तालाब के निकट देव शर्मा नामक ब्राह्मïण के घर ठहरे। शंकर भगवान तो समाधि में लीन हो गए, परन्तु माता पार्वती को उनके ऊपर लगे ब्रहम हत्या दोष की वजह से नींद नहीं आ रही थी।
रात्रि के समय गाय का बछड़ा अपनी माता को कहता है कि * हे माता, सुबह यह ब्राह्मïण मुझे बधिया करेगा, उस समय मैं उसकी हत्या कर दूंगा । *गाय माता ने कहा कि *हे बेटा, ऐसा करने से तुझे ब्रहम-हत्या का दोष लग जाएगा।* बछड़े ने कहा कि *माता मुझे ब्रहम हत्या के दोष से छुटकारा पाने का उपाय आता है*। गाय और बछड़े की सारी बातें पार्वती माता ने ध्यानपूर्वक सुनी।